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कुछ बूंदे कुछ फुआर
तफसीर जब बेबसी का हुआ
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।
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जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी थे उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
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छेड़कर ज़िक्र तो करो
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे
सोये हुए दर्द के साथ ।
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उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा कर दे ।
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तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
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10 टिप्पणियां:
जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
वाह सुंदर
अब इस कैद से रिहा कर दे
व्वाहहहहह
बेहतरीन..
सादर
अच्छी रचना
बहुत खूब ... कुछ नए अंदाज़ के शेर ...
बहुत खूब ...
वाह क्या सुंदर लिखावट है सुंदर मैं अभी इस ब्लॉग को Bookmark कर रहा हूँ ,ताकि आगे भी आपकी कविता पढता रहूँ ,धन्यवाद आपका !!
Appsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj
बहुत सुंदर भाव ।
वाह!क्या ख़ूब कहा 👌.
सादर प्रणाम आदरणीया ज्योति दीदी.आपका संदेश मिला अत्यंत हर्ष हुआ.दो बार मैंने आपको ईमेल किया 'एहसास के गुँचे'के link के साथ.शायद आप को मिला नहीं. एहसास के गुँचे का link मेरे ब्लॉग पर बुक का लोगो लगा है एक बार आप वहाँ क्लिक करे सभी साइड उपलब्ध है वहाँ.एक बार जरुर आइएगा 🙏
बेहतरीन और लाजवाब ...बहुत सुन्दर सृजनात्मकता ।
बहुत सुनंदर भाव की सभी रचनाएँ। बधाई।
उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा कर दे ।
हृदय को छुती रचना 👌👌👌👌👌
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