मंगलवार, 30 जून 2020

संगत ........


स्वाती की बूँद का

निश्छल निर्मल रूप ,

पर जिस संगत में

समा गई

ढल गई उसी अनुरूप ।

केले की अंजलि में

रही वही निर्मल बूँद ,

अंक में बैठी सीप के

किया धारण

मोती का रूप ,

और गई ज्यो

संपर्क में सर्प के

हो गई विष स्वरुप ।

मनुष्य आचरण जन्म से

कदापि , होता नही कुरूप ,

ढलता जिस साँचे में

बनता उसका प्रतिरूप ।

8 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सुंदर ... मनुष्य स्वाति की बून की तरह जिस रूप में चाहे ढल सकता है ...।

Sarita sail ने कहा…

सुंदर सृजन

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

सही बात

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

वाह। गहरी बात।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

प्रकृति के रहस्यों को कौन जाने!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन .
जैसी संगति पाइये वैसौ ही सुख दीन .

सचमुच संगति का प्रभाव स्थायी और अवश्यम्भावी होता है . सुन्दर अभिव्यक्ति ज्योति जी .

hindiguru ने कहा…

सुन्दर भाव

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!लाजवाब सृजन वह भी संगत का ..
निशब्द दी