गुरुवार, 11 जून 2020

पत्थरों का स्रोत

पत्थरों का ये स्रोत ..


क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के 
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने
बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
और सोच रही हूँ
कैसे बीनूँ इनको ?
एक लम्बा पथ तुम्हे
बुहार कर
दिया था ,मैंने
और तुमने उसे
जाम कर दिया
कंकड़ पत्थर से ।
पर यहाँ
सहनशीलता है
कर्मठता है
और है
इन्तजार करने की शक्ति ,
ठीक है ,
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।

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मौन होकर निहार रही हूँ 
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी 
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में 
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द 
सहन न कर पाओ

12 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-0६-२०२०) को 'पत्थरों का स्रोत'(चर्चा अंक-३७३१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 12 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Jyoti Singh ने कहा…

धन्यवाद यशोदा जी

Jyoti Singh ने कहा…

धन्यवाद अनिता

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत बढ़िया ।

kirti dubey ने कहा…

Bhut bdiya

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

क्या पता पाँव के चुभन का दर्द मन बदल दे। बहुत सुन्दर रचना।

hindiguru ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

मौन की अभिव्यंजना

bhavana shrivastava ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ... बिखरे पत्थरों की चुभन घाव कर देती है पर इंतज़ार ख़त्म नहीं होता प्रेम करने वाले का ...

Meena Bhardwaj ने कहा…

ठीक है ,
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
सकारात्मकता का भाव लिए सुन्दर सृजन ज्योति जी ।