अब क्या करना है
ये जिंदगी और मिल भी
गई तो क्या?
अब वक्त ही नही है
इन सभी बातों के लिए
इन सभी जज़्बातों के लिए
हर बात के लिए 'वक्त'
मुकर्रर किया गया है यहाँ
उस वक्त पर जो नही हुआ
वो नही हुआ
फिर कभी नहीं हुआ
क्योंकि गलत वक्त पर
किया गया काम
किसी काम का नही हुआ
उसमें वो बात ही नही होती
जो समय पर होने से है होती
वगैरह वगैरह वगैरह
न जाने ऐसे कितने ही सवाल
उम्र के ढलने पर
जवानी के दौर गुजरने पर
जहन में जन्म लेते है
या लेने लग जाते है
क्योंकि
उम्र के उस पड़ाव पर
आदमी खड़ा होता है
या हम खड़े होते है
जहाँ इच्छाये
साथ छोड़ने लग जाती हैं
जिंदगी जीने का
सलीका जान जाती है,
यही है जिंदगी
जब तक रास्ते समझ में आते है
तब तक लौटने का समय
होने लगता हैं
धीरे धीरे हर बात से
नाता टूटने लगता हैं,
तभी
आदमी की सोच को
तथास्तु तथास्तु तथास्तु
कह कर समय
अपनी रफ्तार का
अहसास कराता हैं
जो होना था
सो हो गया
जो है ,उसमें खुश रहने की
20 टिप्पणियां:
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-3-21) को "कली केसरी पिचकारी"(चर्चा अंक-4021) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार कामिनी जी,बहुत बहुत धन्यबाद
बस ज़िन्दगी को जीना है रिश्ते निबाहने हैं .... जो हो गया भूल जाओ ... ऐसी ही नसीहतें मिलती हैं .... मन कितना दरक जाता है इसका एहसास नहीं होता .
आज की वर्तमान परिस्थितियों पर सार्थक रचना
जिंदगी की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना, ज्योति दी।
मनुष्य के रिश्तों,कर्मों, परिस्थितियों से उत्पन्न पहेलियां अनेक प्रश्न छोड़ जाती हैं जिसे सुलाझाने की कोशिश,मन:स्थिति के उतार-चढ़ाव का नाम जीवन है।
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प्रिय ज्योति दी बेहतरीन सृजन।
सस्नेह
सादर।
वाह!गज़ब का दर्शन 👌
जब तक रास्ते समझ में आते है
तब तक लौटने का समय
होने लगता हैं
धीरे धीरे हर बात से
नाता टूटने लगता हैं,
तभी
आदमी की सोच को
तथास्तु तथास्तु तथास्तु
कह कर समय
अपनी रफ्तार का
अहसास कराता है।
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीया ज्योति दी।
सादर
संगीता जी बिल्कुल सही कहा है आपने,अपनी जिंदगी नही जीने का अफसोस तो बना ही रहता है,
जिंदगी खाक न थी
खाक उड़ाते गुजरी
तुझसे क्या कहते तेरे
पास जो आते गुजरी,
दिन जो गुजरा तो किसी
याद की रौ में गुजरा
शाम आई तो कोई
ख्वाब दिखाते गुजरी ,
अच्छे वक्तों की तमन्ना में
रही उम्र- ए- रवां
वक्त ऐसा था के
बस नाज उठाते गुजरी ।
हार्दिक आभार , बहुत बहुत धन्यबाद संगीता जी 👏👏🙏🙏
बहुत बहुत शुक्रिया सवाई जी, आभार
तहे दिल से शुक्रिया ज्योति जी
स्नेहयुक्त ज्ञान से सनी प्यारी सी टिप्पणी करने के लिए श्वेता जी हार्दिक आभार
अनिता तहे दिल से शुक्रिया, हार्दिक आभार
ढ़लती उम्र के ये पछतावे...
वाकई, समय रहते चेतनाओं को सहलाते, थोडा करीब जाते तो शायद ....
उम्दा रचना हेतु बधाई व शुभकामनाएं ।।।
संगीता जी बिल्कुल सही कहा है आपने,अपनी जिंदगी नही जीने का अफसोस तो बना ही रहता है,
जिंदगी खाक न थी
खाक उड़ाते गुजरी
तुझसे क्या कहते तेरे
पास जो आते गुजरी,
दिन जो गुजरा तो किसी
याद की रौ में गुजरा
शाम आई तो कोई
ख्वाब दिखाते गुजरी ,
अच्छे वक्तों की तमन्ना में
रही उम्र- ए- रवां
वक्त ऐसा था के
बस नाज उठाते गुजरी ।
हार्दिक आभार , बहुत बहुत धन्यबाद संगीता जी 👏
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जैसी भी गुज़री
अच्छी गुज़री
कब क्या तुमसे चाहा था
कब क्या तुमसे माँगा था
ख़ाक किये है ख्वाब जब
कब क्या तुमसे पाया था .
गुज़र गयी है
गुज़र रही है
बाकी भी यूँ ही
गुज़र जाएगी
एक सर्द सी खामोशी बस
दिल को थोडा सहलाएगी .
अच्छा लिखा ज्योति .... यूँ ही से भाव आये मन में ...
संगीता स्वरुप .
वाह, बहुत खूब संगीता जी, मुझे हक जताना अच्छा लगता है, आपका ये यू ही मुझे बहुत भाता है, आपका लिखा हुआ मुझे पढ़ना अच्छा लगता है , आप दिल खोलकर लिखे हक से लिखे आपका सदैव स्वागत है। शुक्रिया
हार्दिक आभार आपका 🙏🙏
ज्योति दीदी, आपके और संगीता दीदी के जीवन का अनुभव,और अनुभव से मिला जीवन दर्शन हमारे मन मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ रहा है,आपकी ये सुंदर नायाब रचना और उसकी टिप्पणी में लिखी गई प्रेरणात्मक समीक्षा को नमन करती हूं,शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह ।
तुम्हारी प्यारी बातें स्नेह का प्रतीक है जिज्ञासा ,बहुत बहुत शुक्रिया हार्दिक आभार
बहुत बहुत सुन्दर
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