युग परिवर्तन
युग परिवर्तन
न तुलसी होंगे, न राम
न अयोध्या नगरी जैसी शान .
न धरती से निकलेगी सीता ,
न होगा राजा जनक का धाम .
फिर नारी कैसे बन जाये
दूसरी सीता यहां पर ,
कैसे वो सब सहे जो
संभव नही यहां पर .
अपने अपने युग के अनुसार ही
जीवन की कहानी बनती है ,
युग परिवर्तन के साथ
टिप्पणियाँ
अनुपम ।
बेहतरीन रचना।
सादर।
शुभकामनाएं
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आभार
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन।