युग परिवर्तन

युग परिवर्तन

न तुलसी होंगे, न राम

न अयोध्या नगरी जैसी शान .

न धरती से निकलेगी सीता ,

न होगा राजा जनक का धाम .

फिर नारी कैसे बन जाये

दूसरी सीता यहां पर ,

कैसे वो सब सहे जो

संभव नही यहां पर .

अपने अपने युग के अनुसार ही

जीवन की कहानी बनती है ,

युग परिवर्तन के साथ

नारी भी यहॉ बदलती है ।

टिप्पणियाँ

सटीक बात । लोग चाहते कि बस नारी सीता जैसी रहे । सार्थक सोच
नूपुरं noopuram ने कहा…
गागर में सागर । कह दी सारी बात ।
अनुपम ।
Sweta sinha ने कहा…
नारी के लिए समाज का दृष्टिकोण किसी युग में नहीं बदला।
बेहतरीन रचना।

सादर।
Jyoti khare ने कहा…
सुंदर सृजन
शुभकामनाएं

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आभार
Anuradha chauhan ने कहा…
बहुत सुंदर रचना
Sudha Devrani ने कहा…
युग परिवर्तन के साथ नारी का बदलना जरूरी भी है
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन।
मूल स्वभाव वही रहेगा भूमिकाएं बदलती रहेंगी.

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