याचना

आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम
ढलते सूरज को करके सलाम ,
कल सुबह जो आओगे
लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,
आशाओं की किरणे फैलाना
मंजूर करे जिससे , ये मन ।
कण -कण पुलकित हो जाए
तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,
जन -जन में भरकर निराशा
न रोज की तरह ढल जाना ,
आशाओ के साथ उदय हो
खुशियों की किरणे बिखराना,
करती आशापूर्ण याचना
हाथ जोड़कर आती शाम ,
रवि तुम्हे संध्या बेला पर
करू उम्मीदों भरा सलाम ।

टिप्पणियाँ

M VERMA ने कहा…
रवि को उम्मीदो भरा सलाम और कल फिर आने की याचना -- आशावादी रचना
ज्योति सिंह ने कहा…
verma ji shukriya hausala aafjaai ke liye
vijay kumar sappatti ने कहा…
jyoti deri se aane ke liye ksham chahunga . bahut dino baad blog me aaya hoon .

aapki ye kavita padhkar jaise dil me ek naya utsaah bhar gaya hai .. main aapki dusari kavitao ko bhi jaldi hi padhunga



regards

vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
बहुत बढ़िया रचना . लिखती रहिये. धन्यवाद.
UMEEDON KI AAS MEIN RACHI SUNDAR KAVITA.......AASHAA KA SANCHAAR KARTI, SUBAH KI LAALI KE SWAAGAT KO TATPAR LAJAWAAB KAVITA

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