खोज करती हूँ उसी आधार की
फूँक दे जो में उत्तेजना
गुण न वह इस बांसुरी की तान में ,
जो चकित करके कंपा डाले हृदय
वह कला पायी न मैंने गान में ।
जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह
ओस के आंसू बहा के फूल में ।
ढूंढती इसकी दवा मेरी कला
विश्व वैभव की चिता की धूल में ।
डोलती असहाय मेरी कल्पना
कब्र में सोये हुओ के ध्यान में ।
खंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ
विरहणी कविता सदा सुनसान में ।
देख क्षण -क्षण में सहमती हूँ अरे !
व्यापिनी क्षणभंगुरता संसार की ।
एक पल ठहरे जहाँ जग हो अभय
खोज करती हूँ उसी आधार की ।
(सविता सिंह)
_________________________
ये रचना उन दिनों की है जब उच्चमाध्मिक स्तर में अध्यन करते हुए ,हमारी मित्र मंडली के ऊपर लिखने का जूनून सवार था हमलोग व्यस्तता में भी खयालो को रहने के लिए कागज़ के घर दे जाते थे और मेरे इन्ही साथियों में से एक साथी की दिमागी उपज है जो मेरे हृदय को स्पर्श करने के साथ साथ प्रेरणा स्रोत भी हुई । आज हमें बिछडे बरसो हो गए अब तो यकीं से कह भी नही सकती कि हम मित्र है मगर शब्द और भाव आज भी साथ है ,वो सुनहरे पल भी । आजादी क्या है ?इससे जुड़े कितने प्रश्नों पर मैं एक आलेख लिखी और मन हालातो से जुड़कर इतना दुखी हुआ कि ये रचना उभर आई और शिकायत से ज्यादा खोज है ऐसे आधार की ........
गुण न वह इस बांसुरी की तान में ,
जो चकित करके कंपा डाले हृदय
वह कला पायी न मैंने गान में ।
जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह
ओस के आंसू बहा के फूल में ।
ढूंढती इसकी दवा मेरी कला
विश्व वैभव की चिता की धूल में ।
डोलती असहाय मेरी कल्पना
कब्र में सोये हुओ के ध्यान में ।
खंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ
विरहणी कविता सदा सुनसान में ।
देख क्षण -क्षण में सहमती हूँ अरे !
व्यापिनी क्षणभंगुरता संसार की ।
एक पल ठहरे जहाँ जग हो अभय
खोज करती हूँ उसी आधार की ।
(सविता सिंह)
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ये रचना उन दिनों की है जब उच्चमाध्मिक स्तर में अध्यन करते हुए ,हमारी मित्र मंडली के ऊपर लिखने का जूनून सवार था हमलोग व्यस्तता में भी खयालो को रहने के लिए कागज़ के घर दे जाते थे और मेरे इन्ही साथियों में से एक साथी की दिमागी उपज है जो मेरे हृदय को स्पर्श करने के साथ साथ प्रेरणा स्रोत भी हुई । आज हमें बिछडे बरसो हो गए अब तो यकीं से कह भी नही सकती कि हम मित्र है मगर शब्द और भाव आज भी साथ है ,वो सुनहरे पल भी । आजादी क्या है ?इससे जुड़े कितने प्रश्नों पर मैं एक आलेख लिखी और मन हालातो से जुड़कर इतना दुखी हुआ कि ये रचना उभर आई और शिकायत से ज्यादा खोज है ऐसे आधार की ........
टिप्पणियाँ
रचना गौड़ ‘भारती’