मेरी चिंताए
मेरे ख्यालों की धारायें ,
जन - हित चिंता दर्शाती है ,
क्योंकि
मानव जीवन की पहेलियों के
संग उलझी रह जाती है ।
देख विवशता आदर्श की ,
निः शब्द स्तब्ध रह जाती है ।
क्या होगा आगे इस युग का ,
ये सोच काँप सी जाती है ।
ये चक्र विचारों का हमें ,
जाने किस ओर ले जाएगा ।
इस स्वर्ण धरा को भविष्य ,
किस रस से अलंकृत कर पायेगा ।
टिप्पणियाँ
आपकी चिंताएँ बेहद जायज़ हैं ! किसी भी संवेदनशील वयक्ती के मनमे ये चिंता आना लाज़िम है ..
निः शब्द स्तब्ध रह जाती है ।
सुन्दर प्रस्तुति
निः शब्द स्तब्ध रह जाती है ।
badhia likh rahihain jyoti, aise hi likhti rahen shubhkaamnayen.
जाने किस ओर ले जाएगा ।
इस स्वर्ण धरा को भविष्य ,
किस रस से अलंकृत कर पायेगा ।"
चिंताएँ जायज़ हैं....अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
देख विवशता आदर्श की
निःशब्द स्तब्ध रह जाती है
आज के सन्दर्भ में बहुत ही सामायिक चिंतायें हैं और आदर्शों की लाचारी पर हम किंकर्तव्यविमूढ रह जाते हैं।
बहुत ही अच्छा और सच्च लिखा है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
जन - हित चिंता दर्शाती है ,
क्योंकि
मानव जीवन की पहेलियों के
संग उलझी रह जाती है ।
वाह ज्योति जी,
आपकी कविता में जनहित की चिन्ता दर्शाई गयी है मैं भी उसमें अपके साथ हूं…॥अच्छी लगी कविता।
पूनम
जाने किस ओर ले जाएगा
SACH LIKHA HAI ....... VICHAARON KI UDAAN BAHOT LAMBI HOTI HAI ...ULAJH KAR RAH JAATI HAI ...
वैसे आदर्श तो सदा ही अलंकृत रहेंगें ही, भले ही उसका झंडा लेकर चलने वाले कितने ही कुचले जायें. यही शाश्वत सत्य है, त्याग बलिदान की धरती पर त्याग बलिदान ही मिसाल बना था, बना है और बनेगा.
धैर्य या कहें कि सहिषुनता बनाये रखे.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
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