शक के दायरे में
हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है ,
पत्थर मार कर घर में झांकने लगे है ,
कानों को चिपका कर सुनने लगे है ,
फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं ,
तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है ,
और मन गढ़त किस्से बनाने लगे है ,
हर बात उनकी समझ से परे है ,
फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है
पत्थर मार कर घर में झांकने लगे है ,
कानों को चिपका कर सुनने लगे है ,
फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं ,
तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है ,
और मन गढ़त किस्से बनाने लगे है ,
हर बात उनकी समझ से परे है ,
फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है
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हमसफ़र यादों का.......